नेताओं के सताए
नेताओं के सताए
नेताओं के सताए बैठे हैं।
घपलों से झुंझलाए बैठे हैं।।
जिता देंगें दे वोट इन्हीं को,
खूब जिनसे तंग आए बैठे हैं।।
झूठे वादे सुन – सुन इनके,
हम कितने गम खाए बैठे हैं।।
जोर-जबर सियासत का बढा,
अश्कों में सब नहाए बैठे हैं।।
क्या अन्तर नाग और साँप में,
सब को ही आजमाएं बैठे हैं।।
सिल्ला नंगा नाच है सियासत,
दीन-धर्म सिर झुकाए बैठे है।।
-विनोद सिल्ला@