” नेताओं का खेल ” !!
बरसों से चलता आया है ,
नेताओं का खेल !!
एक दूजे के घोर विरोधी,
जब चुनाव में उतरें !
नारे , झंडे रहे अलग औ ,
अपने परचम फहरे !
सत्ता , कुर्सी अगर मिली तो ,
धुल जाते हैं मैल !!
एक दूजे के वोट काटते ,
नये नये आरोप !
कभी दिखे जो दुश्मन जैसे ,
अपने बदले भेष !
घटती , बढ़ती जहां कुर्सियां ,
इनकी लगती सेल !!
संविधान को रखें ताक पर ,
ये खोजें राह नयी !
जनता टुकटुक देख रही बस ,
प्रजातंत्र है यही !
वोट यहीं बेकार हो गये ,
नहीं ठगों को जेल !!
उत्सव के अवसर इनके हैं ,
हाथ लगे ना छोड़ें !
चुटकी में परिणाम को बदलें ,
धारा का मुख मोड़ें !
हाथ लिये ऐसी मशाल है ,
खत्म ना होवे तेल !!
सोच समझकर वोट करें अब ,
हम बने नहीं नादां !
खेल खत्म हो इनका जानो ,
रखें अटल ईरादा !
सज़ा इन्हें दो ऐसी भैये ,
मिले ना जिसकी बेल !!
बृज व्यास