नील गगन
विषय- नील गगन!
विधा – विधाता छंद !
विधान – २८ मात्रा, १४- १४ मात्रा पर यति,चार चरण, दो दो चरण समतुकांत, अंत गुरु गुरु !
( १,८,१५ व २२ वी मात्रा लघु)
1222 1222 1222 1222
गगन अब नील रंगा हैं, नशे में होश खोया हैं!
घनी कालीस की रातें , नज़ारा बे ख़ुदी का हैं!
उसी में चमकता प्यारा, लुभाता चाँद न्यारा हैं!
घुला है प्यार प्यालों में, बग़ावत का इरादा है!!१
जुड़े नक्षत्र भी आकर , बना ब्रह्मांड सारा हैं!
खगोलीय नभ जैसे ही, हमारा प्राण प्यारा हैं!
बहारों ने चुराई हैं, सदा ऊर्जा उजाले की !
वही रजनी रही शीतल,प्रभा ले चंद्र वाले की !!२
सुहानी चाँदनी रातें, टपकती ओंस की बूँदें!
निहारूँ रूप मैं तेरा, भला तूँ नैन क्यों मूँदे!
चमकती नूर की बिजली, गगन का चाँद आया है!
बढ़ा है ख्वाब चेतन में, ज़रा सा प्रेम पाया है !!३
सुनों साथी कहानी भी, उषा तेरी निशानी है!
प्रभा की रश्मियों से भी,निशा ख़ूबी विरानी हैं!
हमें संसार देते हो , दिवा सौन्दर्य होता है !
भरे आकाश में नीला, दुपट्टा साथ होता हैं!!४
छगन लाल गर्ग विज्ञ!