नीर सा निखरता बदन है
***** नीर सा निखरता बदन है *****
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नीली – नीली झील में चमकता बदन है।
नीले – नीले नीर सा निखरता बदन है।
खोया – खोया सा मिले बहुत खूबसूरत,
ख्वाबों-ख्यालातों भरा उभरता बदन है।
चलता कोई भूलवश नही हैं बहाना,
फूलों जैसे बाग में महकता बदन है।
कैसे सहता मैं रहूं नज़र का निशाना,
यौवन से भरपूर हो उमड़ता बदन है।
मनसीरत मूर्छित हुआ दिखे अधमरा है,
आदतवश हो मीन सा उछलता बदन है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)