नीर में आग लगे
मनहरण – घनाक्षरी
**नीर में आग लगे**
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झील में है शीत पानी,
चढ़ती हुई जवानी।
दीवाने संग दीवानी,
प्रेमिल की आस हैं।।
नीर में भी आग लगे,
सोये स्वप्न भी हैं जगे।
तन बदन जलता,
खास बैठे पास है।।
दिल धड़कने लगा,
मन मचलने लगा।
सांस बहकने लगी,
अंग अंग प्यास है।।
घर से बहुत दूरी,
प्यार बना मजबूरी।
हनीमून की उमंग,
गजब आभास है।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)