नीर बहाता,
हायकू मुक्तक
नीर बहाता,बचपन अपना, याद दिलाता।ं
खेलो खुलके, मत डर डर के, पाठ पढ़ाता
बचपन के , ये खेल सुनहरे, रोज सबेरे।
बोझ उठाता,झुक कर चलता,राह दिखाता।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सीतापुर
हायकू मुक्तक
नीर बहाता,बचपन अपना, याद दिलाता।ं
खेलो खुलके, मत डर डर के, पाठ पढ़ाता
बचपन के , ये खेल सुनहरे, रोज सबेरे।
बोझ उठाता,झुक कर चलता,राह दिखाता।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सीतापुर