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27 Mar 2021 · 1 min read

नीर बहाता,

हायकू मुक्तक

नीर बहाता,बचपन अपना, याद दिलाता।ं
खेलो खुलके, मत डर डर के, पाठ पढ़ाता
बचपन के , ये खेल सुनहरे, रोज सबेरे।
बोझ उठाता,झुक कर चलता,राह दिखाता।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सीतापुर

Language: Hindi
410 Views
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