नीरज जी के दो पत्र
कवि सम्मेलनों के सुकुमार राजकुमार गीतकार नीरज जी का श्रद्धापूर्वक स्मरण
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मेरे संग्रह में नीरज जी के दो पत्र हैं । एक “सहकारी युग” हिंदी साप्ताहिक ,रामपुर के एक जुलाई1989 अंक में प्रकाशित पत्र है तथा दूसरा मेरी पुस्तक माँ (भाग 2) के संबंध में 1995 में प्राप्त आशीर्वाद पत्र है।
नीरज जी की आवाज में एक अनोखी खनक थी। उनके पढ़ने का अंदाज अलग ही था और कोई भी कवि उनकी कॉपी नहीं कर सकता था।
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प्रस्तुत है सहकारी युग ,हिंदी साप्ताहिक रामपुर (उत्तर प्रदेश ) में 1 जुलाई 1989 को प्रकाशित श्री नीरज जी की प्रतिक्रिया जो उन्होंने कवि सम्मेलन के संबंध में मेरी रिपोर्ट को पढ़कर अखबार के लिए प्रेषित की थी:-
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“आज आपके पत्र में कवि सम्मेलन की समीक्षा पढकर मुझे बहुत सुख मिला। इसलिए नहीं कि रवि भाई ने मेरी प्रशंसा की है बल्कि इसलिए कि उन्होंने इस कवि सम्मेलन की समीक्षा बड़े तटस्थ भाव से की है। जिसकी आलोचना करनी चाहिए थी उसकी उन्होंने आलोचना की है और जिसकी जितनी प्रशंसा करनी चाहिये थी उतनी उसकी प्रशंसा की है। इस प्रकार यदि अन्य पत्रकार भी कवि सम्मेलन में पढ़ी हुई कविताओं का पोस्टमार्टम करना आरम्भ करें तो कवि सम्मेलन मंचों के निरंतर गिरते हुए स्तर को ठीक किया जा सकता है। आप रवि प्रकाश को मेरी बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनायें दें ।
आपका नीरज
जनकपुरी मेरिस रोड
अलीगढ़
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पोस्टकार्ड पर प्राप्त नीरज जी का पत्र जिसमें उन्होंने मेरी काव्य पुस्तक माँ के प्रति अपना आशीर्वाद प्रेषित किया था:-
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अलीगढ़ 13 – 11 – 95
प्रिय भाई
तुम्हारी कृति माँ मिली । पढ़ कर बहुत प्रसन्नता हुई । इस समय मैं बहुत बीमार हूँ। इसलिए विशेष कुछ लिखने में असमर्थ हूँ। क्षमा करना । मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और प्यार
सप्रेम नीरज
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अंत में नीरज जी के प्रति श्रद्धा सुमन व्यक्त करते हुए एक कुंडलिया
नीरज जी (कुंडलिया)
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गाते जीवन भर रहे , सरल सलोने गीत
नीरज जी दिल में बसे ,बनकर प्यारे मीत
बनकर प्यारे मीत , कंठ अद्भुत था पाया
वह रस वह आह्लाद ,नहीं वापस फिर आया
कहते रवि कविराय , याद अब भी हैं आते
कवियों के सिरमौर , मधुर नीरज जी गाते
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लेखक: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451