नीम का पेड़
आज कटेगा !
आज मिटेगी’ पहचान
इस घर की
जो था कभी पुरखों की शान
वह पेड़ नीम का।।
जिसने देखी ‘ कितनी चौपालें
जिसकी डाली पर पड़े थे,
झूले सावन में हर साल
ठंडाई भांग की खूब छनी थी
ढोल मंजीरे पर गूंजी थी
फागुन मे फगुआ की तान’!!
अब हो गया था बूढ़ा
वह पेड़ नीम का ।।
चले गये लोग जो करते थे उससे प्यार
लगता आखिर कैसे अच्छा
पेंट लगे पक्के घर के सम्मुख
वह पेड़ नीम का ।।
मोटर से चलने वाला आरा
आ गये लेकर ठेकेदारा
बंध गए रस्से डालों पर
घर-घर की कर्कश
आवाजों से गूंजा गांव
टुकड़े टुकड़े में कट रहा था
वह पेड़ नीम का।।
दो घंटे सिर्फ लगे
पुरखों की पहचान मिटाने में
नाप नाप कर टुकड़े करके
लाद रहे थे गाड़ी पर
फिर कीमत खरीदार ने
सौंपी नये मालिक को
बिक गया बेचारा
वह पेड़ नीम का।।
गाड़ी पर लदे नीम के टुकड़े
अन्तिम बार देख रहे थे
वह भूमि जिस पर वह
मस्ती में लहराया था
देकर शीतल छाया
रो रो बिदा हुआ द्वार से
वह पेड़ नीम का।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव” पूनम “