नीम का पेड़
भूतपूर्व मेयर मि. गोयल का शहर में दबदबा है। बंगले के आसपास की अच्छी खासी जगह दबा रखी है। बंगले के विस्तार हेतु पिछवाड़े गरीब विधवा की झोंपड़ी तोड़ दी। साथ ही अपनी हद में लगे नीम को भी उखाड़ फेंका। विधवा के दोनों बच्चों को पेड़ बहुत प्यारा था क्योंकि इस के नीचे बैठकर उनकी बीमार मां ठीक हो जाती थी। उसको भीषण दमा था। नीम से उसके फेफड़ों को आक्सीजन मिलती थी।
बच्चे बहुत गिड़गिड़ाए-
“हुजूर यह पेड़ हमारी मां की दवा है। वो इसके नीचे बैठकर ठीक हो जाती है साहब”
गोयल साहब ने अनसुना कर नीम का काम तमाम करा दिया। कुछ ही दिनों में विधवा दवा व आक्सीजन की कमी से चल बसी।
संयोग से पन्द्रह दिन बाद गोयल जी की पुत्री को अस्थमा का गंभीर अटैक आया। उन्होंने बचपन के मित्र डॉ चावला को बुलाया गया। उन्होंने अचानक पड़े अटैक का संबंध आनुवांशिक बताया। गोयल साहब ने स्वीकार किया कि बच्ची की दादी को दमा था। चूँकि डॉक्टर गोयल साहब के बचपन के मित्र थे पीछे वाले नीम की हवा में ज्यादा बैठने की सलाह दी।
गोयल साहब ने उन्हें असली बात बताई तो डाक्टर बरस पड़े–“यार तुम पढ़े लिखे लोग हो। इतना ज्ञान नहीं कि पीपल नीम व मनी प्लांट ये पेड़ पौधे सबसे ज्यादा आक्सीजन प्रदान करते हैं। ”
“इन्हें अपने आसपास अधिक से अधिक लगाना चाहिए। ”
“और वैसे भी तुम जैसा शिक्षित वर्ग ही पर्यावरण संरक्षण के बजाय उसे नष्ट करने पर उतारू हैं। अनपढ़ गांव वाले ही अच्छे हैं जो प्रकृति से जुड़े हैं।
“गोयल साहब अब समझे कि माँ हमेशा बंगले के पीछे वाले पोर्शन में ही रहना क्यूँ पसंद करती थीं????
” गरीब विधवा पेड़ के नीचे क्यों बैठती थी???
” पर्यावरण हमारा प्राण है।”
आज उनकी आंखों के सामने रामू व दीन के चेहरा घूम गया। ऊंट आज पहाड़ के नीचे आ गया था।
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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