नीति
शुभ दुपहरी मित्रों!
नहीं नेक है नीति किसी की
है यह कौआ युद्ध
नोच रहे हैं प्रतिपल सबको
नहीं कोई है शुद्ध।
कैसे काटें,कैसे नोचें
कैसे मारें चोंच
दर्द भी हो पर चीख न निकले
यही रहे सब सोंच।
आग लगाएँ किधर किधर
किसके मन मे ज़हर भरें
टेढ़े उल्लू को सीधा कर
अपना उल्लू’उल्लू’कर लें।
–अनिल मिश्र’अनिरुद्ध’