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23 Jul 2020 · 1 min read

नीति दोहे

माँ बसती हर साँस में , भरती है उत्साह ।
माता के आशीष बिन, पूर्ण न हो हर चाह ।।

जिस घर माँ नहीं रहती, वो घर हैं सुख हीन ।
दीवारें रूठी लगें, धन दौलत भी दीन ।।

उड़ती सबकी नींद है, जब बढ़ जाता कर्ज ।
दूर रोग होता नहीं, जब तक मिले न मर्ज ।।

बात बात पर जो करें, लड़ने की हर बात ।
मौका यह नित ढूँढते, करने को उत्पात ।।

गलत काम नित जो करें, होते है बदमाश ।
जीवन इनका यूँ ढहे, जैसे होती ताश ।।

जिनकी वाणी ओज से, सुनकर टूटे पाश ।
अगर संत ऐसे मिले, हो दुर्गुण का नाश ।।

भू पर किसको सुख मिला, जो तू ढूँढे यार ।
जो ढूँढते है सुख को, पाए दुःख अपार ।।

सच को कौन मिटा सकें, कितने बुन लो जाल ।
मेघ कितना ही ढँक ले, रवि तोड़े हर ढाल ।।
—-जेपी लववंशी, हरदा, म.प्र.

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 238 Views
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