नीड़
नीड़
हाय उड़ गया पंछी मेरे नीड़ का
थाह न लगा पाया मेरी पीड़ का
ढूंढती उसे थकी धूमिल सी नज़र
साँझ हो गई अब तो लौट आ घर
उड़ीकती खुली आँखों से हूँ सोती
निर्झर झरती बूँदें तकिया भिगोती
सहला लेती हूँ उसे समझ तेरा सर
अब तो आजा सूना सुना सा है घर
फ़िक्र में तेरे पिंजर हो गयी काया
कोख का जना है कैसे छूटे माया
हर आहट पे लगे आयी तेरी ख़बर
बीत गयी सदियाँ अब तो आजा घर
नदी में तेरे नाम का उछाला सिक्का
मन्नत का धागा बांधा माथा है टेका
इंतेज़ार में आँखें सूखी हो गई पत्थर
छूटे आस टूटे साँस जल्दी आजा घर
रेखांकन I रेखा