नीड़ फिर सजाना है
आज फिर से मन को मेरे
हौंसला जुटाना है ।
सांसे अगर है साथ तो
नीड़ फिर सजाना है ।
झंझावातों ने नीड़ की
प्राचीर भेद डाली है ।
स्रोत टूटे नीड़ के सब
अब दोनों हाथ खाली हैं ।
वात हुई शान्त अब
अवशेष सा कुछ दिख रहा ।
बिखरा हुआ साहस मेरा
तुमसे सांसे भर रहा ।
स्वप्न सब गुमसुम हुए
दूर अति दुबके खड़े है ।
संवेदनाएं तार तार सब
अश्रु निर्झर झर रहे हैं ।
कहने को बस था नीड़ वो
जीवन का मेरे सार था ।
अपने थे सब साथ में
इन सबसे ही संसार था ।