Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jun 2024 · 1 min read

नींव_ही_कमजोर_पड़_रही_है_गृहस्थी_की___

नींव_ही_कमजोर_पड़_रही_है_गृहस्थी_की___
आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है, इसके कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा।

1, माँ बाप की अनावश्यक दखलंदाज़ी।
2, संस्कार विहीन शिक्षा।
3, आपसी तालमेल का अभाव।
4, ज़ुबान।
5, सहनशक्ति की कमी।
6, आधुनिकता का आडम्बर।
7, समाज का भय न होना।
8, घमंड।
9, अपनों से अधिक गैरों की राय।
10, परिवार से कटना।।

मेरे ख्याल से बस यही 10 कारण हैं शायद पहले भी तो परिवार होता था और वो भी बड़ा, लेकिन वर्षों आपस में निभती थी, भय भी था प्रेम भी था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।

142 Views

You may also like these posts

आखिर कब तक ऐसा होगा???
आखिर कब तक ऐसा होगा???
Anamika Tiwari 'annpurna '
कभी राधा कभी मीरा ,कभी ललिता दिवानी है।
कभी राधा कभी मीरा ,कभी ललिता दिवानी है।
D.N. Jha
महबूब
महबूब
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
हकीकत मोहब्बत की
हकीकत मोहब्बत की
हिमांशु Kulshrestha
एक शाम ऐसी थी
एक शाम ऐसी थी
Ritu chahar
सत्य
सत्य
Ruchi Sharma
जिंदगी पेड़ जैसी है
जिंदगी पेड़ जैसी है
Surinder blackpen
"नन्नता सुंदरता हो गई है ll
पूर्वार्थ
अनुभूति...
अनुभूति...
ओंकार मिश्र
यह सुहाना सफर अभी जारी रख
यह सुहाना सफर अभी जारी रख
Anil Mishra Prahari
जीवन  आगे बढ़  गया, पीछे रह गए संग ।
जीवन आगे बढ़ गया, पीछे रह गए संग ।
sushil sarna
अधूरा नहीं
अधूरा नहीं
Rambali Mishra
ज़रूरतों की भीड़ में
ज़रूरतों की भीड़ में
Dr fauzia Naseem shad
********* प्रेम मुक्तक *********
********* प्रेम मुक्तक *********
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जा रहा है
जा रहा है
Mahendra Narayan
एक स्पर्श
एक स्पर्श
sheema anmol
तुमने छोड़ा है हमें अपने इश्क और जिस्म का नशा कराकर।
तुमने छोड़ा है हमें अपने इश्क और जिस्म का नशा कराकर।
Rj Anand Prajapati
पंचवक्त्र महादेव
पंचवक्त्र महादेव
surenderpal vaidya
" मत सोचना "
Dr. Kishan tandon kranti
रंग ही रंगमंच के किरदार होते हैं।
रंग ही रंगमंच के किरदार होते हैं।
Neeraj Agarwal
23/195. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/195. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
अकेला रह गया शायर
अकेला रह गया शायर
Shekhar Chandra Mitra
हमारा घोषणा पत्र देख लो
हमारा घोषणा पत्र देख लो
Harinarayan Tanha
मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे
मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे
manorath maharaj
कुछ अर्जियां डाली हैं हमने गम खरीदने को,
कुछ अर्जियां डाली हैं हमने गम खरीदने को,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ना जाने क्यों ?
ना जाने क्यों ?
Ramswaroop Dinkar
..
..
*प्रणय*
सफ़र में लाख़ मुश्किल हो मगर रोया नहीं करते
सफ़र में लाख़ मुश्किल हो मगर रोया नहीं करते
Johnny Ahmed 'क़ैस'
जीवन उत्साह
जीवन उत्साह
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
दुर्गा भाभी
दुर्गा भाभी
Dr.Pratibha Prakash
Loading...