नींव की ईंट
जब इस अदारे के, अमूमन, सभी बाशिंदे,
अपने, दीन-ओ-ईमान की कसमें खाते हैं
नवाज़ा जाता रहा है अक्सर जिन्हें ईनामों से,
किस्से यहां जिन की गैरतमंदी के पढ़े जाते हैं
फिर क्यों यही लोग तिजारत हो, मोहब्बत हो या हो सियासत
बुराइयों, गुनाहों के, अंधेरे गलियारों से गुज़रते नज़र आते हैं
बड़ा सुलझा नज़रिया है, मेरे इन मौका-परस्त साथियों का
ये तो हर दौर में, हुक्मरानों की छत्रछाया में नजर आते हैं
और वो भी कम नहीं हैं, इन की वफादारी की कदर करने में
इनके साबित हुए गुनाह भी, गैरइरादतन करार दे दिए जाते हैं
और हां, अगर चलना भी चाहे, कोई भूल से, ईमानदारी की राह,
हर ऐसे शख्स को, ये, दबी ज़ुबां, कमअक्ल और नादान बताते हैं
इन का हर “क्यों”, “क्यों” नहीं होता, वरन् दोस्ती का पैगाम होता है
और “क्यों नहीं” कहते ही ये आपके भरोसेमंद दोस्त बन जाते हैं
काश ऐसे लोग समझ पाते, क्या होते हैं असल तरक्की के मायने
बंदगी क्या है, खुद्दारी किसे कहते हैं, उसूल क्यों बनाए जाते हैं
शुक्र है, इन कमनसीबों की तमाम कोशिशों के बावजूद
दानिशमंद सिपाही अपने दम पे कामयाब हो ही जाते हैं
हुनरमंद, दानिशमंद, गैरतमंद लोगों का होना, महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं
ये महकमे के वो मज़बूत खंबे हैं जो मेहनत और ईमान से बनाए जाते हैं
ईमानदारी, इन्साफ, इंसानियत हैं ज़रूरी हर इंसानी अदारे के लिए,
ये वो सिमट, रेती और गारा हैं जो इसकी नींव को मज़बूत बनाते हैं
~ नितिन कुलकर्णी “छीण”