नींव का पत्थर
“पापा कल, 15 अगस्त है हमारी स्वतंत्रता प्राप्ति का दिन। ” नन्हा बिट्टू पिता से बोला।
“पापा पता है हमें नेताओं ने आजादी दिलाई है तभी तो ये सरकार बनाने कर देश को संभाल रहे हैं। ”
” बिल्कुल सही बेटा।लेकिन आज जो हम आजाद बैठे हैं उनके आधारशिला किसने रखी यह बात तुम्हें अभी नहीं मालूम। ”
वे कौन वीर पुरुष थे पापा?
मुझे उनके विषय में जानना है। ”
बिट्टू की नन्ही आंखों में जिज्ञासा तैर उठी।
तो सुनो बेटा! उस वीर पुरुष का नाम मंगल पांडे था।
कई लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं परंतु सबसे पहला बलिदान देश के पहले क्रांतिकारी मंगल पांडे था। फिरंगियों के विरुद्ध स्वर मुखरित करने वाले मंगल पांडे द्वारा जगाई अलख स्वतंत्रता के बाद ही शांत हुई।
उनके द्वारा रखी गई सुदृढ़ नींव के संबल से ही हम स्वतंत्र होने में सफल हुए हैं । इस आधारशिला का स्मरण करना हमारा अनिवार्य कर्तव्य है जिसने आजादी का अमूल्य अधिकार दिलाया।”
ये रणबांकुरा आज हमारे मध्य न होते हुये भी आजादी की नींव के प्रथम पत्थर के रूप में उपस्थित है उनका पुण्य-स्मरण आवश्यक है।
भारत में स्वातंत्र्य आंदोलन का शंखनाद करने वाले सर्वप्रथम क्रांतिवीर थे
मंगल पांडे। 30 जनवरी 1831 को जन्मे मंगल पांडे आजीविका हेतु 22 साल की उम्र में 1849 में अंग्रेजी सेना में शामिल हुए थे।
अंग्रेजी हुकूमत की नये कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था।
एक खबर फैली गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल होता था जिसने सैनिकों के रोष में आग में घी का काम किया।
9 फरवरी 1857 को मंगल पांडे द्वारा नया कारतूस लेने से मना कर दिया और 29 मार्च 1857 को उसी राइफल से अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन व लेफ्टिनेंट बॉब को मौत के घाट उतार दिया। यहीं से बजी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की रणभेरी।
उन्हें गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया और मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई। स्वातंत्र्य आंदोलन की “नींव के पत्थर” के रूप में मंगल पांडेय भारत के इतिहास में अजर अमर हैं।”
बिट्टू चल पड़ा दोस्तों में नया ज्ञान बांटने।
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©