नींबू के मन की वेदना
नींबू के मन के वेदना
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कब तक तुम मुझको दरवाज़े पर लटकाओगे।
मेरे भी कुछ अरमान है,कब तक मुझे सताओगे।।
मैने किए बहुत उपकार बुरी नजरों से बचाया है।
खुद लटक कर मैने ही आज तक बचाया है।।
मै ही था जो मिरचो के संग भी मिल जाता था।
सबको ही मै बुरी नजरो से हर दम बचाता था।।
मैने क्या गुनाह किए हैं,जो मुझे ही फांसी देते हो।
मेरे जैसे और भी है,उनको कुछ नही कहते हो।।
नींबू पानी की जगह,लोग कोल्ड्र ड्रिंक पीते है।
नींबू पानी पीने वालों को हम पिछड़ा कहते है।।
मेरे बिन कोई भी चाट पकोड़ी नही होती है पूरी।
सलाद भी मेरे बिन सबको लगती आधी अधूरी।।
मेरा भी कुछ सम्मान है,मेरा भी कुछ है गरुर।
इसलिए आज हो गया हूं सबकी पहुंच से दूर।।
मै ही दूध को फाड़कर उसके टुकड़े कर देता हूं।
फाड़ कर दूध को पनीर का स्वाद में ही देता हूं।।
बंद करो मुझको लटकाना,ये सलाह सबको देता हूं।
वरना मैं भी अपनी कीमत को आसमान से छूता हूं।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम