नींद
नींद पलकों तक आ
जाती तेरे दर निवास
कोशिश करूँ सोने की
खो जाती है किधर
देख तेरी विरह व्यथा मैं
शून्य में गुम हो जाती
करने को बेबस बहुत
नही सकती कर कुछ
हाल तुम अपना सभालो
विषम पर विजय पा लो
अपने को ही सजा लो
बस इतना अपना मान लो
डॉ मधु त्रिवेदी