नींद में स्वपन
दैनिक क्रियाओं के क्रियान्वयन में
थक हार कर चूर चूर हुई मेरी देह
ढूंढ रही थी बिस्तर निद्रासन हेतु
निद्रावस्था में बिस्तरासीन हुई
सुस्ताई हुई अलसाई हुई मुर्छित सी
आँखें मंद मंद बंद होती होती
निद्रित हो कर गहरी नींद में
न जाने कब लीन हो गई
खो सी गई जिन्द एक अलग जहाँ में
छोड़कर नीरस उद्देश्यहीन जीवन
मन विचरित हुआ स्वर्गासम स्थान पर
और हिलोरें खाने लगा सपनों के संसार में
यथास्थिति जीवंत स्वपन में आया
एक सुंदर सुडौल लंबी कद काठी वाला
राजशाही पोशाक, सिर फर मोरपंख
गोरा वर्ण,प्यारा मुख और छैल छबीले
शहजादे ने होले होले से छुआ मुझे
तनबदन में विद्युत सी तरंगें,उमंगें
और सिरहनें उत्पन्न हुई और महसुस
किया उसका प्रेमवशीभूत स्पर्श
दिल में हुई प्रेमरस चुभन और विचलित
व्यथित हुआ मन,मुर्छित हुआ तन
तीव्र हुआ नसों मे बहता रक्त वेग
बहकने लगा मन दहकने लगी देह
प्रेममयी पवित्र प्रेम मे महकने लगा ह्रृदय
महसूस हुआ आकर्षक हुआ समर्पण
तभी निद्रा हुई भंग,टूटा स्वपन,आया होश
संभाला स्वयं को,पाया नियंत्रित मन
हुआ पछतावा ,क्यों टूटा स्वपन
क्यों न ठहरे वो प्रेमिल हसीन पल
लम्बी अलसाई अंगड़ाई से छोड़ा बिस्तर
नई सुबह, नया दिन और एक नई शुरूआत
सुखविंद्र सिंह मनसीरत