नींद पर दोहे
लूट छीन खा बेहतर, रहो महल में आप।
रेशम के गद्दे मिलें, नींद नहीं पर श्राप।।//1
हित चाहे जो और का, करे प्रेम की बात।
नींद उसे अच्छी मिले, मिले निरोगी गात।।//2
नींद जिसे आती नहीं, उसका सब बेकार।
बिन जल के ज्यों चून से, दूर चपाती प्यार।।//3
करे हृदय से मेहनत जो, स्वर्ग लगे संसार।
धरा फिरे भ्रम पालकर, नरक उसे हर द्वार।।//4
नींद एक उपहार है, कर इसकी जयकार।
मिलती पर उसको यहाँ, जिसको सबसे प्यार।।//5
कपट करोगे तुम अगर, दिल होगा लाचार।
मिट्टी में कीचड़ मिले, कहलाए वह गार।।//6
दवा नींद को समझिए, कर निज पर उपकार।
प्रीतम सुन पैट्रोल बिन, वाहन हर बेकार।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’