नींद कहाँ है
ऐ नींद तु कहाँ जाती है
रात आकर चली जाती है
तु कहाँ रह जाती है
ठंडी हवाओं की गवाह है
गरम कंबल की पनाह है
आँखें देख तेरी राह में
जगकर तुझें बुलाती है
ऐ नींद तु कहाँ जाती है।
बिस्तर पर बैठा खिड़की से ताक रहा हुँ
चाँद की रोशनी में बाहर झांक रहा हुँ
पसरा घना अंधेरा और सन्नाटा बाहर है
मुझकों जानें क्यों भीतर ये लागे है
मन होकर बैचेन खुद से ही भागे है
हे रात हसीं और चांद से रोशन
फिर भी तु न साथ है न पास है
ऐ नींद तु कहाँ जाती है
रात आकर चली जाती है
तु कहाँ रह जाती है।
सोनु सुगंध