निहार रही हूँ उस पथ को
निहार रही हूँ उस पथ को
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नीर भरी नयनों से -मैं ,
निहार रही हूँ उस पथ को,
जिस पथ को तुम छोड़ गये थे,
लिये उदास से चेहरे को
भावहीन बावरी सी मैं,
नीर भरी नयनों से -मैं….,
चुभे शूल सी चंद्रिका
उर में मेरे….
तारे भी अहसास कराते,
उर में उठते हुये दर्द को मेरे,
उस पथ को पखार रही थी -मैं
नीर भरी नयनों से -मैं….,
चिड़ियों के कलरव ने जब
तोड़ी तंद्रा मेरी…
तब -प्राची से उषा ने ली अंगणाई
और निशा को अंक में लेकर,
आशा का एक सवेरा लाई…
कि…..,
आओगे तुम पुनः लौटकर इक दिन,
मेरे इस सूने से जीवन में,
इंतजार करती हूँ उस पथ पर -मैं,
नीर भरी नयनों से -मैं….,
निहार रही हूँ उस पथ को…,
जिस पथ को तुम छोड़ गये थे ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
11-02-2024