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8 Jan 2020 · 1 min read

— निस्वार्थ प्रेम —

वो प्रेम ही क्या
जिस को शर्तों से
किया जाए किसी से

जहाँ शर्त आ जाती है
वहां शर्म कहाँ रह जाती है
अपने मतलब के लिए
शर्त लगाई जाती है

लोग कहते हैं कुछ
करने कुछ लग जाते हैं
प्यार की आड़ में
धीरे से घात लगाते हैं

एहसास तब होने लगता है
ठोकर लगती है सीने पर
लालच भर के किया था उस ने
प्रेम का बस नाटक

प्रेम करो तो निस्वार्थ करो
वर्ना न दुखाओ दिल किसी का
भर के न रखो द्वेष किसी से
दिल को साफ़ रखो सदा सभी से !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
445 Views
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