निस्वार्थ प्रेम में,
निस्वार्थ प्रेम में,
बांध दिया था उसने,
बिन मांगे हर जिद को मेरे,
तकदीर बनाया था उसने,
आग में जैसे,
हिमालय की ठंडक भरी,
हर पल में उसने,
उम्मीद पे हिम्मत धरी।
कोई पड़ाव में रुका न था,
हर मंजिल में डटकर टीका था,
प्रेम और जिंदगी के लक्ष के सीमाओं पर,
वो अपने ताकद से खड़ा हुआ था।
ना टूटने का डर था,
ना जितने का गुरुर,
जिंदगी के हर पथ पर,
चलता रहा सबका सम्मान कर।