निष्ठुर
झकझोरते हालात हैं,
उठते देखता हूँ, बगल से अपने लाश मैं,
सिसकियों को न दे सका कोई आस मैं,
निष्ठुरता से लिप्त, बना हूं खोखला बांस मैं,
ढोंगी सा जी रहा हूँ, आज मैं ,
चेहरा तो छुपा है मास्क में,
पर आंखों का क्या करूं इलाज मैं,
दुविधा नहीं है, सब कुछ शीशे की तरह साफ है!