निशा
********** निशा (घनाक्षरी) **********
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निशा काली जब आती ,हसीं सपने दिखाती।
गम को जब बुलाती, जरा न नींद आती।।
सजनी सँवरती है, बिन बात लड़ती है।।
रोज वो झगड़ती है , प्रीतम को न भाती।।
निशा है बड़ी दुलारी,चाँद को भी लगे प्यारी।
चाँदनी से खूब यारी, ,झट चमक जाती।।
बदली चमकती है, भू पर बरसती है।
बिजली गरजती है, आफत में जां आती।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)