निशा सुन्दरी
शान्त स्निग्ध उज्जवल परिवेश बना
स्वागत में श्व़ेत वेश है बना
नभ तारकमय होकर अब सज रहा
शशि मुख पर घूँघट डालें जँच रहा
शरद् श्रतु की आभा नभ से धरा तक है छाई
ओस की चादर सब ओर है समाई
सौंदर्यमय परिवेश में सज धज कर भेष में
जब निशा सुन्दरी आकाश मार्ग से उतरकर
नव वधु सी पद्चाप करती आ रही
सिहर सिहर सकुचाती हुई सी आ रही
जन मानस की पीड़ा हरने को
नव ऊर्जा फिर से भरने को
नव राग ह्रदय में छेड़ने को
देखो निशा सुन्दरी है आ रही
मधुर तान सी बजती है
स्वप्नों की दुनिया सजती है
सब ओर मनोरम छवि छा जाती है
जब निशा सुन्दरी आ दस्तक देती है