निवेदन
स्वीकारो
मेरा प्रणय निवेदन
प्रिय
तन मन
बारी जाऊँ
वृन्दावन की
गलियन में
घूमें राधे
सख्यिन संग
किशन है
जग का न्यारा – न्यारा
स्वीकारे न्योता
सब का
बना है
प्यारा- प्यारा
लाज बचाता
भक्तों – नारी की
भक्ति मार्ग
बताता जग को
स्वीकारो
अरज मेरी
हे जग के
पालनहार
हों धर्म संस्कार
अखंड
मेरे भारत के
तुम ही
खेवनहार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल