निवाला छीन जाए कोई मुँह से अगर
निवाला छीन जाए कोई मुँह से अगर
निवाला छीन जाए कोई मुँह से अगर,
जिस्म दूर हो जाए रूह से अगर,
बिना छत और रोटी के रात जब कटती है,
वही दिल जानता है जिस पर गुज़रती है।।
भूखे को रोटी का टुकड़ा दिखाए,
जब गरीब को कोई चिढ़ाए,
बार बार किसी की किसी पे
जब ज़ुबान फिसलती है,
वही दिल जानता है जिस पर गुज़रती है।।
मुड़ जाए रुख जब गम ए हवाओं का,
असर बेनूर हो जाए जब फिज़ाओं का,
नफरतों की चिंगारी जब सुलगती है,
वही दिल जानता है जिस पर गुज़रती है।।
भाग्य अगर बार- बार रूठ जाए,
टूटा हुआ दिल फिर से टूट जाए,
तो दिल पे ज़ोर की लगती है।
वही दिल जानता है जिस पर गुज़रती है।।
कांटों की तरह चुभ जाए जब अपना कोई,
हकीकत बन जाए जब दर्द भरा सपना कोई,
गम के आगोश में जब सर्द रात पिघलती है।
वही दिल जानता है जिस पर गुज़रती है ।।
सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)