|| निर्विचार समस्त धर्मों का सार है। ||
सारा खेल मन का है। तुम्हारे भीतर जो शक्ति विचार बन रही, सारा खेल उस शक्ति का है। वह शक्ति दो रूपों में हो सकती है–या तो विचार बन जाए, तब लहर बन जाती है; या ध्यान बन जाए, तब सागर बन जाती है।
इसलिए निर्विचार समस्त धर्मों का सार है; क्योंकि जैसे ही तुम निर्विचार हुए, तो जो शक्ति मन के द्वारा विचार बन कर खो रही थी अनंत में, वह खोना रुक जाएगा। मरुस्थल में नदी नहीं खोएगी। तब सारी शक्ति वापिस तुम्हीं में गिरने लगी। तब तुम कुछ भी नहीं खो रहे हो। तब तुम्हारे छिद्र बंद हो गए।
अभी तो तुम एक बालटी हो, जिसमें हजार छेद हैं। कुएं डालते हैं, शोरगुल बहुत मचता है। पानी में डूबी रहती तो ऐसा भी लता है, भर गई। और जैसे ही पानी से ऊपर उठाते हैं कि खाली होना शुरू हो जाती है। खींचते-खींचते थक जाते हो, और जब बालटी हाथ में आती है तो खाली होती है। यही तो हजारों-करोड़ों लोगों का अनुभव है। जिंदगी भर खींचते हैं, तब इतना शोरगुल मचता है कि लगता है भरी हुई आ रही है, लेकिन हाथ आते-आते खाली! मौत के वक्त खाली बालटी हाथ लगती है। इतने छिद्र हैं!
हर विचार छेद है। उससे तुम्हारी ऊर्जा खो रही है। जैसे ही तुम निर्विचार हुए, ऊर्जा को खोने का मार्ग बंद हुआ। तब तुम्हारी ऊर्जा वापिस तुम्हीं में गिर जाती है। तुम सागर हो, तुम ब्रह्म हो, तुम परम हो। इस जगत की जो भगवत्ता सत्ता है, वह तुम हो।
ओशो✍️