निर्वासन
उन लाेगाें का वर्षाें से वहाँ रहना
उन्हें अब बहुत ही खलने लगा था
आतंक की भीषण आग में झूलस
सम्पूर्ण कश्मीर ही जलने लगा था
अपने इस दुर्भाग्य पर स्वयं आज
बिलख कर रो रहा था पूरा कश्मीर
यह बात केवल भयंकर ही नहीं थी
हाे गई थी अब बहुत अधिक गंभीर
नहीं था वहाँ पर काेई भी अपना
उनका दूर दूर तक कहीं रखवाला
और नहीं ही था कोई भी वहाँ
उन लाेगाें का आँसू पोछने वाला
जनवरी उन्नीस सौ नब्बे की
वो भयानक विकराल काली रात
अभी अधिक दिन भी कहाँ हुए
बस है तीन दशक पहले की बात
एक झटके में वर्षोंं से निवासित
लोगों की ताे दुनिया ही बदल गई
हुआ था इतना जघन्य अत्याचार
अन्दर तक आत्मा भी दहल गई
पड़ोसियों ने भी धर्म के नाम पर
खींच ली थी एक लक्ष्मण रेखा
किसके साथ क्या क्या हुआ था
उसने आँखाें से कुछ नहीं देखा
कश्मीर छोड़ो या धर्म बदल लाे
भय से हतप्रभ थे वहाॅं पण्डित सारे
हर हाल में कश्मीर से निकलो
खुलेआम लगे थे ऐसे ऐसे ही नारे
इतना बड़ा जुल्म होने के बाद भी
सरकार कुंभकरण बन कर थी सोई
विधाता भी अपने ही निर्माण पर
आज फफक फफक कर रोई
मानवाधिकार और मीडिया का
कहीं भी नहीं था काेई नामोनिशान
सरकार आतंकियों के आतंक से
कहाँ दिख रही थी परेशान
अपने ही देश में लाेग अब ताे
शरणार्थी बन कर जी रहे थे
जुल्म पर लोगों की बेरुखी काे
कड़ुवा घूंट की तरह पी रहे थे
अभी भी असत्य की वकालत से
राजनेता कहाँ आ रहे हैं बाज
राज धर्म निर्वहन न कर पाने की
उन्हें तनिक भी नहीं थी लाज