## निर्लज्ज पुरुष ##
निर्लज्ज पुरुष
@दिनेश एल० “जैहिंद”
नारी माता, नारी बेटी, नारी भार्या है
हमारी व तुम्हारी !!
फिर जलती क्यों, मरती क्यों, क्यों
फिरती मारी-मारी !!
बैठ आज एक मंच पर करो विचार
इस बड़ी विपदा का,,
हो जल्द समाधान इस समस्या का
रो-रो कहती नारी !!
कहीं पति ही हत्यारा है इसका कहीं
पुरुष ही बलात्कारी !!
कहीं बेटा माँ को मारता है कहीं भाई
ही बहन का दुत्कारी !!
पुरुष जनने का मिला है कैसा जगत
में नारी को अभिशाप,,
हे पुरुषो ! क्या तुम गिरवी रख आए
हो अपनी कहीं खुद्दारी !!
दया-धर्म-प्रेम-उदारता सब तेरे हृदय
से मर चुके असंस्कारी !!
तू तो है बस एक निष्प्राण – निर्लज्ज
है दण्ड का अधिकारी !!
कठोरता, निर्दयता, क्रूरता, धूर्तता ही
तेरी अब पहचान बनी,,
इस बर्बरता को त्याग कर कैसे बनेगा
नारियों का हितकारी !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
26. 12. 2018