निर्मोही हो तुम
कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे
लुटाती ममता हँस कर हो सौतन जैसे
एक बालक है जो तुमसे थोड़ा दुलरा रहा
खीझती हो तुम उसपे हो रण चण्डी जैसे
कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे
जब कभी भी तुम्हे अनसुना कोई करे
भला उसका तो अब भगवान ही करे
उस फरियादी की बात तूने कब है सुनी
जो हर पल हर दम इंताजार ही करे
कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे
इंसान करते है दया मूक बधिरों पर फिरभी
क्या तुमने कंही रख दी अपनी आत्मा गिरवी
जो भगवान हो सबके तो इंसान मत बनो
इक आश लगा रखी है हो उन पे रहम भी
कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे
डॉ एल के मिश्रा