निर्भय; अखंड;अपराजित है भारत !
मुखमंडल पर जीवन है; अराध्य शीर्ष की गाथा से,
वर्तमान सुनो !
तुम्हें याद है न
वो जो वैभव लौटा भारतमाता से ;
क्षणिक वेदना हुंकार लिये ;
पथ स्मृति से हैं अब भी विस्तार लिये ,
भूल के भी हाँ याद रहे ; नहीं जननी ? किसी बेगैरत की;
जो माँ को माँ न कह सके; वो शक्ति नहीं मातृभूमि की,
गलती है सुधार करो;
प्राण सहित भय पार करो !
मातृभूमि की जय के आगे; बन उद्घोष तुम विस्तार करो,
निर्भय ; अखंड; अपराजित है भारत !
श्रृष्टि के लय से संवाद करो !
बुंद भर भी बन राम तुम !
भरतवंश की जयकार करो
हाँ भरतवंश की जयकार…..करो !
©दामिनी ✍
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