निर्भया
तारीफ़ क्या करूँ,
क्या कहूँ मैं निर्भया,
मन पर बोझ,माथे पर कलंक,
दरिंदगी का लहराता ये परचम,
क्या लिखूं,किसकी करू मैं निंदा
वो डूबे राज मद में,कर रहे अब शाही धंधा,
नपुंसक समाज बेहया शाही,पर है मेरी कलम की आजादी,
भूलूँ भी जो खुद को,लेखन धरम मैं कैसे मेंट दूँ,
सत्ता नही,न शाही कोई,कलम में वो पुरुषार्थ नही,
उन जख्मो को क्या कुरेदुं,
इस कलम से उसे कैसे भर दूँl
तारीफ़ क्या करूँ,क्या कहूँ में निर्भया,
जो कर सको तो बस माफ़ करो,
हम,शर्मिंदा,शर्मिंदा और शर्मिंदा
Mridul Chandra . @RageTheTruth