निर्भया बोल रही हूँ
” निर्भया बोल रही हूँ ”
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मैं स्वर्ग से
निर्भया बोल रही हूँ !
नर के वेश में छुपे हुए
भेड़ियों को कोस रही हूँ !
जाने कितने पाप किए ?
मैं बैठी सोच रही हूँ ।
कब , कैसे,किसको नोचा ?
यह हिसाब तोल रही हूँ !
जाने कितनी मर्यादा तोड़ी ?
कितने चीर हरण किए ??
छेड़छाड़ की मत पूछो !
नित इसने बलात्कार किए !!
आज मैं ऊपर !
बैठ स्वर्ग में…………..
खून-सी खौल रही हूँ. ||
मैं कहती !
नारी तुम बचना !
मिश्री कानों में घोल रही हूँ. |
सुनो ! गौर से सृजना मुझे !
मैं स्वर्ग से……………….
निर्भया बोल रही हूँ !!
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डा०प्रदीप कुमार “दीप”