निर्धनताक गोद मे प्रतिभाक बीज
कथा “निर्धनताक गोद मे प्रतिभाक बीज” भाग 3(अन्तिम भाग)
ई देखैत अभिषेकक माँ कानय लगली आ कहय लगली—बउवा हुनका सब सँ मूँह नय लगाव,अभिषेक सोचैत मुद्रा मे बाहर चलि गेलाह।
अभिषेक के रहबाक एकटा निक घर सेहो नय छलनि,फूसक घर जे बरखा होईते मुश्किल पैदा कय दैत छल।एक दिन अभिषेक अपन खेत मे कोदाईर चलाबैत छला आ हर दू बेरक बाद थाकि जायत छलाह, कारण अभिषेक कहियो कल्पनो नय केने छलाह कि ऐहन विपैत आयत ,सहजा एक बेर कोदायर पैर पर पड़ि गेलनि आ रक्तक फब्बारा निकलि पड़लनि ,माँ जे खाय वास्ते बजाबय अबैत छली, खूने खूनामे अपन बेटा के देखैत छाती पीटैत रोदन करैत–बौउवा रौ बउवा ,आ झठ सँ आँचर फारि कपड़ा सँ बान्हि कय अभिषेकक संग आँगन के लेल विदा भेली कि बाटे मे सुधाकर झा जे कम्पाउण्डर छलाह,हुनका देखि अभिषेकक माँ कनैत बजली—यौ बउवा ,बड़ शोणित बहैत छय किछु दवा अछि त दियौ ई सुनैत सुधाकर बाबू कहला–टिटनसक सुईया लेब पड़तै आ सिलाई हेतैय,अहि सब में पचास टका खर्च पड़त जे तुरन्त लागत,ई सुनैत अभिषेक जे दर्द सँ कुहरैत छल याद अबैत छन जे एक बेर बाबुजी के सेहो कटा गेल छलनि त बाबुजी सरिसो तेल गर्म कय धेने रहथिन ई सोचैत अभिषेक माँ सँ कहला—माँ आँगन चलु ,सब ठीक भय जेतै।अभिषेक आँगन जा सरिसो तेल गर्म कय रखला कि पीड़ा सँ सहसा माँ कहि तड़ैप गेलाह। एक दू सप्ताह बाद अभिषेक किछु काज करय योग्य भेलाह।एकाएक एक दिन अभिषेकक एकटा मित्र भेटलनि जे आगु पढ़ाई हेतु अग्रसरित केलाह,मुदा अभिषेक नय कहि नकारात्मक उत्तर देलखिन्ह। हुनकर मित्र जे स्वयं शहर में पढाई करैत छलाह पूर्णतया आश्वासन दय कहला—-देख अभिषेक तू चिन्ता नय कर ,तू नय किया कहैत छय?किछु खर्च नय हेतौ,अखन जे खर्च जेना हेतैक हम करब तु हमरा जेना हेतौ दियहें,बहुते कहलोपरांत अभिषेक हामी भरला,ऐन प्रकारेन अभिषेक मिथिला यूनिभर्सिटी अन्तर्गत जेएन महाविद्यालय सँ ग्रेजुएशन तक केलाह ,ग्रेजुएशन केलाक उपरान्त माँ संगे दरभंगा शिफ्ट भेलाह उद्देश्य ट्यूशन कय कमायक छलनि, मुदा होनि किछु आओर छल। हुनकर दोस्त भेंट करय ऐलनि त बात बात में दोस्त यूपीएससी के लेल विचार देलकनि आ यूपीएससी के फाँर्म नय नय कहितो भरि देलाह आ मेहनत सँ दिन राति एक कय देला ।किछु समय खर्चा लेल ट्यूशन करैथ बाकी तैयारी मे जी जान लगा देला।मेहनत रंग अनलक अभिषेक यूपीएससी प्रथम रैन्क सँ उत्तीर्ण भेलाह, आओर आजु—————
कि तखने अभिषेकक दोस्त अभिषेक अभिषेक करैत ऐलाह कि अभिषेक के अपन भक खुजलनि जे बीतल समय में चलि गेल छलाह ,दोस्त समक्ष आवि पूछैत छन——कि रौ कतय बिला गेल छलें? अपना दोस्त के देखैत अभिषेक भरि पाँजिमे पकड़ि कहय लगलाह—–भाय हम छलौं हिम्मत हारि चुकल, मुदा तू ई कहैत अभिषेकक खुशीक आँसू टपैक पड़ैत अई।
अभिषेकक दोस्त अभिषेक सँ कहैत छथि——अभिषेक बचपन सँ हम सब संगे पढ़ैत छलौं,तोरा हम जनैत छलियौ यूपीएससी क्वालिटी देखैत अछि,क्वान्टिटि नय,तोरा क्वालिटी छलौ,कमी छलौ त वो गरीबी मुदा ई गरीबी कर्मठता आ संघर्षरत के समक्ष बौना अछि।ई सुनैत अभिषेक कहैत छथि—-दोस्त हुए त तोरा जेहन हमरा गर्व अछि भाई।
अभिषेक कलक्टर बनि आजू अपन माँ संगे रहि रहल छथि ओतवे नय अभिषेक अपन बाबुजीक कहियो सरोज बाबु सँ देल वचन पूर्ण कय मिथिलावासीक बीच उदाहरण बनला।
सरोज बाबु जे बगल गाम के छला,पाँच कन्याक बाप छला, ज्येष्ठ पुत्री रुपम ज़िनकर विवाह अभिषेकक बाबुजी अभिषेक सँ बहुत पहिले करवाक वचन देने छलाह हलाँकि ओही दिन केव नय जाने जे अभिषेक कलक्टर बनि जेताह।सरोज बाबुजी ई सोचैत नय अवैत छलाह कि आब त अभिषेक के जाहि ठाम 10-20लाख टका भेटतनि ओतै विवाह करताह।मुदा अभिषेक स्वयम सरोज बाबु के समक्ष जाय कहैत छथि—-चाचाजी, अहाँ अखने हमरा सँ रिश्ता तोड़ि लेलौं,हम अपन बाबुजी के वचन पूरा करब,कतेक सुनैत सरोजबाबु भरि पाँजि पकड़ि बजलाह—-बउवा हम सोचनौ आजुक रंग ढंगक दुनिया,कि अभिषेक बात काटि बीचे में बजलाह—-नय चाचा ई कोना कहैत छी?
एहि तरहेँ अभिषेकक विवाह रुपम सँ संपन्न भेल।अभिषेक गामक जे कर्ज छल ओही सँ मुक्त भय अन्ततः ई सीख देलनि कि “प्रतिभाक खरीद बिक्री नय होयत अछि, संगे प्रतिभा ककरो गुलामी नय करैत अई”
लेखक “मायाकान्त झा”