निर्झरिणी है काव्य की, झर झर बहती जाय
निर्झरिणी है काव्य की, झर झर बहती जाय
सुनो-सुनो वागीश्वरी, छन्द ताल बरसाय
छन्द ताल बरसाय, झमाझम ज्ञानी झूमे
सरस्वती आशीष, ज्ञान शिखर सभी चूमे
महावीर कविराय, काव्य सुर लय तरंगिणी
युग युग बहती जाय, काव्य की यह निर्झरिणी
– महावीर उत्तरांचली