शमशान घाट
निर्जन वन के कोने में,
सब वहीं है।
जमघट है,
पर कोई एक नहीं है।
वह तो अब
अग्निमय है।
प्रत्येक का
इस पथ पर,
चलना तय है।
सन्नाटा
नीरवता
सूनापन,
अवसाद
निराशा
खालीपन।
निःशब्द,
मौन,
न आकांक्षा,
न व्याधि,
चिर निद्रा,
चिर समाधि।
न काम,
न दाम,
न नाम,
एक ही कथ्य है,
राम नाम सत्य है।
कामी,
नामी,
रामी
स्वामी,
न कोई बहाना,
अंत में सबका…,
यहीं ठिकाना।
सारे एक से दिखते,
नहीं ठाट बाट है।
क्योकि…..ये,
शमशान घाट है।