निराशा को छोड़कर _घनाक्षरी
निराशा को छोड़कर,आया मै तो दौड़कर।
आशाओं के रंग रंगा,जीना मैंने सीखा रे।
चिंता सारी छोड़ दी,जिंदगी अब मोड़ दी।
सार सारा इसी में तो,यारा मुझे दिखा रे।।
जो भी होगा देख लूंगा,राग द्वेष फेंक दूंगा।
मानवता लगा लिया अब मैंने टीका रे।।
इसी में आंनद मिले,सजाए स्वप्न सजीले।
“अनुनय “प्रेम बिना, लगे सब फीका रे।।
राजेश व्यास अनुनय