निराशा एक आशा
घिरे निराशा के बादल तो क्या हुआ।
काली है घनघोर घटा तो क्या हुआ।
हरियाली भरी आशा फिर हर्षायेगी।
जब यह गरज बरस यूँ चली जाएगी ।। घिरे निराशा के बादल—–
घनी अमावस निशा तो क्या हुआ।
छोड़ा चाँद सहारा तो क्या हुआ।
यहाँ कुछ सफ़र है तारो के सहारे ,
किरणो की भोर के फिर होंगे नजारे।। घिरे निराशा के बादल—–
चले है जब हम पथरीली राहो पर।
कंटक प्रस्तर तो होंगे ही राहो पर।
सीधे मिले मंजिल, चलना क्या हुआ,
बिन ठोकर लगे, संभलना क्या हुआ।। घिरे निराशा के बादल—–
कच्चे मन के द्वन्द से हम क्यों हारे।
कोशिश बिन ही हारे डर से क्यों हारे।
स्पर्धा इस दौड़ में पिछड़ भी जाते है,
फिर भी हम दौड़ तो सीख ही जाते है । घिरे निराशा के बादल—–
परिवर्तन है देखो बयार भी बदलेगी।
पतझड़ की शुष्क रूसवाई बदलेगी।
स्फुटित होगी कोपल,तरूणाई खिलेगी,
कोयल सुर बसन्त अमराई भी खिलेगी।। घिरे निराशा के बादल—–
(लेखक- डॉ शिव ‘लहरी’)