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23 Oct 2018 · 2 min read

निरंजना

शीर्षक – निरंजना
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हिमालय की तराई में बसे उस छोटे से गांव में आज प्रसन्नता व उत्साह का पारावार हिलोरें मार रहा था, पूरा गाँव प्रकृति के कलेवर में सजा हुआ इंद्र की नगरी अमरावती को मात दे रहा था, और हो भी क्यों न, आज निरंजना जो आने वाली थी, .. जिसने हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर विजय हासिल कर गाँव व देश का नाम रोशन किया था.

निरंजना के माँ बाप फूले नहीं समा रहे थे स्टेज सज चुका था, निरंजना को सम्मानित करने के लिए मंत्री जी आए थेl
मंत्री जी ने भाषण में कहा – ” मुझे गर्व है कि मै आज देश की प्यारी बेटी को सम्मानित करूंगा जिसने अपने गांव ही नहीं पूरे देश का नाम विश्व में रोशन किया है.. मै निरंजना बेटी ओर उसके माता पिता को स्टेज पर बुलाना चाहता हूं,”
निरंजना अपने माँ बाप के साथ स्टेज पर पहुंची तो उसके पिताजी ने माइक पकड़ा, और रुँधे गले से कँपकपाती आवाज में कहा – “मेरी बेटी की जीत उसकी स्वयं की ओर उसकी माँ की जीत है उसने कभी अपने गूंगेपन ओर बहरेपन को अपने मार्ग की बाधा नहीं बनने दिया, उसके माँ ने उसका हौसला बढ़ाया… जब निरंजना छोटी थी तब मैंने इसकी माँ से कहा था कि यह गूंगी बहरी लड़की हमारे लिए अभिशाप है,, जिंदगी भर हमको रुलाएगी,,,, क्यों न हम इसको मार दे,,, लेकिन इसकी माँ ने नही माना, मै उसे मार तो न सका लेकिन उसके साथ पिता सा व्यवहार भी नहीं कर सका,,,,,
,,, लेकिन निरंजना की ऊंचाईयाँ छूने की चाहत और उसकी माँ के विश्वास ने आज मेरे दुर्व्यवहार को हरा दिया… दुर्गम पर्वत को हरा दिया …. हम हार गये… निरंजना जीत गयी,,,,”

मूक भावाकुला निरंजना सिर हिलाकर “नहीं -नहीं” का संकेत करते हुए पिता के गले से जा लिपटी। पिता की आंखों से पश्चाताप आंसू बनकर बह निकला,,,, पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो उठा …….

राघव दुबे
इटावा (उ0प्र0)
8439401034

Language: Hindi
308 Views
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