नियति
जीवन बहुत आहिस्ता से करवट लेता है.. मुझे जैसे कल की ही बात लगती है.. हम सब एक ऑंगन में रंगोली बनाकर भाईदूज की पूजा करते थे..हर तरफ बातें और हॅंसी की आवाजें आती थी.. जाने कहाॅं के किस्से हम सब सुनते-सुनाते थे..कि एक दिन अचानक मेरा भाई
गायब हो गया..हम लोग पागलों की तरह उसकी खोज में लग गए.. सालों बीत गए.. मैं ससुराल आ गई, हर बार भाईदूज पर फूट-फूट कर रोती.. इसी बीच माॅं का देहांत भी हो गया। जीवन में एक उदासी भर चुकी थी, कि एक दिन अचानक मेरे मायके से पापा का फोन आया कि
“सुलोचना तुरंत घर आ जा”
मैं थोड़ा भयभीत हो गयी और अपने पतिदेव जी के साथ पापा के पास पहुॅंच गई..चूॅंकि एक ही शहर में मायका-ससुराल था, तो ज्यादा समय भी नहीं लगा..घर के बाहर थोड़े लोगों को देखकर मैं थोड़ा विचलित हो गई… अनहोनी की आशंका से मन डर रहा था, तभी पापा की नज़र मुझ पर पड़ी तो वो मेरे पास आ गये और
“बेटा वो देखो” करके ऑंगन की तरफ इशारा करते हुए रो पड़े..
वहाॅं करीब ३० वर्ष का एक लड़का माथे पर हाथ रखे बैठा था..
“ये तो अभिजीत की तरह लग रहा है पापा”,
मैंने खुशी से चीखते हुए कहा।
“हाॅं बेटा, तेरा भाई वापस आ गया”, पापा कहते-कहते रो पड़े..
“पर ये कैसे मिला? कहाॅं था ये इतने सालों से”?
“उस दिन जब ये घर से निकला था तो इसका एक बस से एक्सीडेंट हो गया था, बस वाला अकेला था, इसको अस्पताल लेकर गया, पर इसके सर में चोट थी, इसकी याददाश्त जा चुकी थी, इसके पास कोई आई डी भी नहीं थी, उसने पूरे १५ साल इसकी दवा करवाई, साथ ही अपने गाॅंव की पुलिस चौकी में भी सूचना दे दी थी, पर हम लोगों को ये नहीं मिल सका। परसों इसकी मेमोरी वापस आई, उसने सबकुछ बताया इनको, तो ये इनको लेकर आ गये”,
पापा ने एक सांस में सबकुछ बता डाला और अपने साथ खड़े एक व्यक्ति से मुझे मिलवाया..
७० वर्ष के लगभग उन सज्जन के प्रति मेरे मन में अपार श्रद्धा भर गई, मैंने अपने हाथों से उनका हाथ पकड़ा और उन्हें गले लगा लिया.. “आपने कैसे सेवा करी इसकी, इतने धैर्य से, इतने वर्षों तक”? मैं तुरंत पूछ बैठी।
उन्होंने कहा कि ..
“बेटा, इस एक्सीडेंट के बाद मैंने गाड़ी चलाना छोड़ दिया था, मेरे बेटे की कैंसर से मृत्यु हो चुकी थी, मेरी पत्नी ये दु:ख नहीं सह सकी थी, वो भी साथ छोड़ गई.. मैं अकेला था, इसकी सेवा में मैं अपना दर्द भूल चुका था, आज मैं कितना खुश हूॅं बस बता नहीं सकता”।
इतना कहकर वो चल दिए और हम सब नियति के इस खेल को सोचते रहे कि..”वाह भगवान! दुनिया में इतने अच्छे लोग अभी भी बचे हैं…”
समाप्त
स्वलिखित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
‘रश्मि लहर’
लखनऊ