नियति
जीवन यह इक झोल झमेला ।
नियति भाग्य मानुष मन खेला ।।
नियति, नियति क्या करते आखिर ,
नियति कर्म से हर पल हारा ।
कोशिश करने में क्या जाता ,
मरे हुए को किसने मारा ।।
सोच बदल कर देखो अपने ,
बाहर लगा हुआ शुभ मेला ।
नियति भाग्य मानुष मन खेला ।।
भाग रहा है वक्त परिन्दा ,
तू पागल अब क्या देख रहा ।
सूखी सरिता तट पर बैठा ,
क्यों बेसुध कंकड़ फेंक रहा ।।
सत्य मार्ग पर चलने वाला ,
चढ़ता चोटी एक अकेला ।
नियति भाग्य मानुष मन खेला ।।
नियति क्रूर भी आज मजे से ,
इक समझ खिलौना खेल रहा ।
चक्र व्यूह में खुदी फँसा तू ,
लक्ष्य कौन सा अब बेध रहा ।।
उम्मीदों की दौड़ लगा इक ,
शायद मिले मोड़ अलबेला ।
नियति भाग्य मानुष मन खेला ।।