नियति से प्रतिकार लो
जब कभी विचलित हो मन
नैराश्यता भरने लगे,
अशांत होकर मन ये फिर
उत्साह जब तजने लगे,
पूर्व के पुरुषार्थ से
साहस स्वयं का आंकना ।
मन को थोड़ा शांत रख
अतीत में फिर झांकना ।
जाने कितने ही बवंडर
आये बहुत दहलाए थे ।
पांव जमाए खूब जमकर
फिर भी लड़खड़ाए थे
किन्तु हम लड़ते रहे
मैदान में डटते रहे
और आया वक्त वो भी
जब बवंडर जा चुका था ।
समय और पुरुषार्थ से
विजय का पल आ चुका था |
भाग्य ने तुझको सराहा
यश तिलक माथे दिया था ।
हर कर सारी क्लान्ति तेरी
परिणाम सब उत्तम दिया था।
आज फिर वो ही बवण्डर
पर अधिक न टिक सकेगा ।
देखकर दृढ़ता तुम्हारी
निश्चय ही ये पथ तजेगा
किन्तु तब तक धैर्य से
कुछ शान्त मन से काम लो ।
मन के उपक्रम साध सब
नियति से प्रतिकार लो ।