निभाते जिम्मेदारी
किसी ने लिखी कविता। किसी ने लिखी कहानी। गैरों की बातें मनमानी। पर हमने एक ना मानी। हमने उन्हें कितना सहेज कर रखा है। भारत के गौरव कि केवल पहचान बना रखा है। कम से कम हम 1 दिन के लिए भारतीय बन पाते। कब महात्मा की आत्मा को कुछ सुख दे पाते। हम आजतक ना बन पाए शाकाहारी। बस दो शब्द बोल कर निभाते हैं अपनी जिम्मेदारी l