निबंध
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***********लॉकडाऊन के मध्य जीवन *********
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कुदरत या बीमारी का जब बरसता कहर,
तबाह हो जाते है तब बड़े शहर के शहर।
कोरोना वायरस के प्रभाव के कारण देश के प्रत्येक कोने में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक त्राहि त्राहि मची है, जिसकी चपेट में जनमानस आ रहा है और जिसके परिणामस्वरूप देश को अमूनन नुकसान हो रहा है और देश में परिस्थितिवश विषम और भयानक स्थिति को नियंत्रित करने और कोरोना के बढ़ रहे फैलाव को रोकने के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया है।
लॉकडाउन का हिन्दी में शाब्दिक अर्थ है पूर्णबंदी या तालाबंदी अर्थात यदि हम इस शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने की कोशिश करें तो लॉकडाउन को सरल और साधारण शब्दों के रूप में इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता हैं कि जब आपातकाल या महामारी में आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की दूसरी सेवाओं को प्रतिबंधित किया जाए और जिसकी अनुपालना में देश और राज्य की सरकारे सख्ताई से पुलिस और सैना का प्रयोग करती हैं, तो उस स्थिति को लॉकडाउन की स्थिति कहा जा सकता है।
भारत में कोरोना के बढ़ते वैश्विक संकर्मण को देखते भारत में सर्वप्रथम राजस्थान और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों द्वारा लॉकडाउन की घोषणा की गई और फिर उसके बाद पंजाब राज्य में पूर्ण सख्ताई के साथ लागू किया गया और तत्पश्चात फिर भारत सरकार द्वारा पूरे देश में प्रथम बार इक्कीस दिन लॉकडाउन घोषित किया गया और फिर उसको टुकड़ों में आवश्यकतानुसार पूर्ण देश में लॉकडाउन बढाया गया,जिसके परिणाम स्वरूप देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था चरमरा गई और जिसका सबसे बड़ा खामियाजा गरीब और मध्यम वर्ग ने सर्वाधिक ने भुगता और रोजमर्रा की जरुरतों के लिए कष्टदायक घड़ियों को काटा और इस संकट की स्थिति में ईश्वर की प्रार्थना का सहारा लिया ।
हम यह बात आरंभ से ही अपने पूर्वजों एवं बुद्धिजीवियों के मुख से सदैव सुनते आएं हैं कि समय कभी भी किसी का गुलाम नहीं रहा हैं और समयानुसार समय ने अपने रंगों का जादू दिखाया है, जिसकी इंसान ने अनुपालना सुखी या दुखी मन से अवश्य की है और इस संदर्भ में यह भी कहा जा्ता रहा है कि समय पर किसी का जोर नहीं रहा है।
समय पर नहीं चलता है किसी का जोर,
बंदा चाहे लाख कोशिशें कर ले पुर जोर ।
. महीना भर पहले आस्तित्व में आई एक भंयकर संक्रमित जानलेवा कोरोना नामक बीमारी,जिसको की महामारी भी घोषित किया जा चुका है, ने पूरे विश्व भर को चंद ही दिनों में अपने आगोश में ले लिया है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों इंसानी जाने देकर हम खामियाजा भुगत रहे हैं।इस बीमारी का मूल स्थान और आरम्भिक केंद्र चीन देश को माना गया है।
कोरोना है एक संक्रमित बीमारी।
घोषित हुईं विश्वभर में महामारी।।
विश्वभर के लगभग सभी छोटे-बड़े देशों ने इस जानलेवा हानिकारक बीमारी से निजात पाने के लिए एक ही तरीका ढूंढा है और वह है केवल लॉकडाऊन….।
कोरोना बीमारी से यदि पानी है निजात
घर में लॉकडाऊन हो जाओ सर्व जमात
लॉकडाऊन का अर्थ है स्वेच्छा से स्वयं को स्वतंत्रता की सीमाओं में बांधते हुए बाहरी गतिविधियों एवं क्रियाकलापों में प्रतिबंधित एवं निषेध होते हुए निज घर रूपी कारावास में कैद कर लेना। यह स्वेच्छा से जनहित एवं निजहित में जनता द्वारा जनता के लिए और जनता के साथ निषेधाज्ञा का अनुपालन है।
और यह तरीका काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है जिसके क्रियान्वयन से कोरोना महामारी के फैलाव में अकुंश लगा है और जब तक हम पूर्ण रूप से इस भंयकर बीमारी से छुटकारा नहीं पा लेते तब तक लॉकडाऊन के नियमों का पालन हमें पूर्ण सक्रियता एवं तन्मयता के साथ करना पड़ेगा अन्याय कोरोना नामक भूत हमें पूर्ण रूप से निगल लेगा।संकट की आई इस घड़ी में बिना किसी घबराहट के बुलंद हौंसलों के साथ सरकार द्वारा जारी की गई महत्वपूर्ण हिदायतों का अनुपालन हमें पूर्ण निष्ठा और लग्न के साथ करना चाहिए ताकि हम स्वयं,घर-परिवार, समाज,समुदाय,गाँव, शहर,प्रदेश,देश एवं विश्व भर को हम घर पर आरक्षित करके सुरक्षित रख सकें।यह कोई लापरवाही,मजाक या हास्य का विषय नहीं है, बल्कि इसे हमें पूर्ण संजिदगी और होशोहवास के साथ मानवता को बचाने के लिए गंभीरता के साथ लेना चाहिए, बेशक इसके लिए हमें सामाजिक, मानसिक.शारीरिक और आर्थिक हानियों,सम्स्याओं और पैदा हुईं विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़े,क्योंकि प्राथमिकता के आधार पर मानव जान सर्वोपरि कुछ भी नहीं है और वैसे भी कहा जाता है जान है तो जहान हैं।
आओ हम सभी लॉकडाऊन की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए और कोरोना महामारी से निजात पाने के लिए प्रण करे हम इन विषम परिस्थितियों में सरकार द्वारा जारी हिदायतों का अनुपालन करते हुए लॉकडाऊन को वर्तमान में अनिवार्य और आवश्यक समझते हुए इसका पालन पूरी निष्ठा से करेंगे ताकि हम अपने घर परिवार के साथ सुरक्षित,स्वस्थ और सुख समृद्धि के साथ रह सकें।
कोरोना महामारी यदि जड़ से है मिटानी।
लॉकडाऊन में हमें जिम्मेदारी है निभानी।।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
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******* आत्महत्या अपरिपक्वता की निशानी ******
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गत वर्षों से आत्महत्या सुनने में एक सामान्य सा शब्द हो गया है, हर रोज किसी न किसी की खुदकुशी या आत्मदाह की खबर कानों में पड़ ही जाती है। ऐसा नहीं है कि भूतकाल में ऐसी घटनाएं होती ही न हो।आम जन से लेकर महान हस्तियों एवं सिने जगत के छोटे बड़े सितारों ने अपनी परेशानियों एवं परिस्थितियों से तंग आकर स्वयं की जीवन लीला को समाप्त करने का सहारा न लिया हो। इसलिए यह एक आम सी अवधारणा बनती जा रही है।
आत्महत्या का साधारण शब्दों में यह सामान्य अर्थ है कि अपनी आर्थिक, सामाजिक तथा निजी विषम परिस्थितियों के कारण मन में विकार,अशांति, एकाकीपन, चिंता,भय,असीमित अपूर्ण इच्छाएं इत्यादि भावनाओं के समावेश से स्वयं के द्वारा स्वयं की हत्या कर लेना है।आत्महत्या करने वाले के मन में उस समय नकारात्मक भावनाएं उसे इस प्रकार से जकड़ लेती हैं कि उसे मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए इसके सिवाय ओर कोई चारा ही नजर नहीं आता और स्थायी शांति और समस्या के निदान हेतु वह आत्महत्या का सहारा लेकर अपने खुद के जीवन को अपने ही हाथों से निगल ज्यादा है और अपनी जीवन यात्रा को समाप्त कर सदा के लिए लंबी नींद में सो जाता है।
आत्महत्या के लिए वह फांसी पर लटकना, रेलगाड़ी या वाहन के आगे कूदना,जहर या जहरीला पदार्थ निगलना,नदी या नहर में कूदना, बंदूक या रिवाल्वर आदि का प्रयोग करता है, जोकि उसे आसान लगता है जबकि उस सयय वह यह बात भूल जाता है कि खुद का मारना ही सबसे मुश्किल कार्य है और कायरता की निशानी है ।आत्महत्या के रूप में वह एक बहादुर की बजाय कायर की मौत मरता है और स्वयं को वह पशु,पक्षी,जानवर से भी नीचे गिरा लेता है ,क्योंकि ये कभी भी आत्महत्या नहीं करते बल्कि विषम परिस्थितियों का निडरता से सामना करते हैं और जीवन पथ पर निरन्तरता में गतिशील रहते है।
आँकड़ों की दृष्टि से देखें तो प्रतिवर्ष विश्व भर मे औ 8,00,000 से ले कर 10,00,000 के बीच लोग आत्महत्या का सहारा लेकर अपनी जीवन लीला स्वयं ही समाप्त कर देते हैं और साल 2020 में यह आँकड़ा 15,00,000 के पार भु हो सकति है,जिसमें पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या दो से तीन गुणा तक अधिक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2020 में के अनुसार दक्षिण ऐशिया में 2 लाख 58 हजार मौतों का कारण आत्महत्या है और जहाँ पर 40 सैकिण्ड में एक शख्स आत्महत्या कर लेता है। पिछले तीन दशकों में आत्महत्या की दर 43प्रतिशत बढी हैं और भारत में 2000 से लेकर 2015 तक 18.41 लाख लोगो ने आत्महत्या की है ।
आत्महत्या एक इंसान की अपरिपक्वता की आसानी है, जिसके किरण मनुज विषम परिस्थितियों का सामना करने की बजाय उनसे हार मान लेता हैं और उसे समाधान का इससे आसान मार्ग सुझता नहीं हैं। वह खुद से जुड़े और उस पर निर्भर एवं उसको चाहने वाले परिवार, कुटुंब, निजी संबधियों,मित्र प्यारों की भी परवाह नहीं करता है,जो कि उसकी भीरू प्रवृत्ति और पराजित भावना और सोच को दर्शाता है, जिस कारण उसकी जीवन जीने की इच्छा समाप्त हो जाती है और वह धरती लोक को छोड़ परलोक सिधार जाता है।
छोटे गांवों से लेकर बड़े शहरों तथा अमीरों से लेकर अमीरों तक ऐसी घटनाएं घटती रहती है, लेकिन आमजन या गरीब व्यक्ति द्वारा की गई आत्महत्या तो अखबार की छोटी सी खबर भी नहीं बन पाती जबकि अमीर या मशहूर व्यक्ति द्वारा की आत्महत्या अखबारों के मुख्य पृष्ठ का मुख्य हैडिंग बन जाती है, यद्यपि आत्महत्या तो आत्महत्या है, चाहे वह किसी के द्वारा ही की गई हो,क्योंकि आम हो या खास जीवन तो सभी का महत्वपूर्ण होता है।
आवेग और आवेश में आकर इंसान ऐसी घटना को क्यो अंजाम देता है ,जबकि वह जानता है मानुष जन्म दुर्लभ है, बार बार नहीं मिलता..?….ऐसी स्थिति में क्यों नहीं वह भावनात्मक की बजाय बुद्धिमत्ता का परिचय देता है..? ऐसी विकट और विषम स्थिति में इंसान को परिस्थितियों और समस्याओं का डटकर सामना करना चाहिए न कि आत्महत्या का सहारा लेना चाहिए और उस समय मात्र कुछ सैकिंड के लिए आत्मचिंतन कर अपने इर्द गिर्द जुड़े व्यक्तियों का ध्यान रख स्वयं के मनोबल को सुदृढ करना चाहिए न कि आत्मदाह का सहारा….क्योंकि उसके बाद भी जीवन बहुत कुछ है।
मानस जन्म दुर्लभ मिले,यह जीवन है अनमोल,
आत्महत्या निज आयुध क्यों मिट्टी में रहा घोल।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)