निद्रा का त्याग
सुबह सवेरे त्याग नींद को, निकलो घर से बाहर तुम…
प्रकृति की छटा निराली, घर से निकलो बाहर तुम।
शांत चित्त हो देखो पहले, घर से निकलो बाहर तुम।।
चिड़ियों की है चहचहाहट, निकलो घर से बाहर तुम।
मुर्गे की है बांग निराली, निकलो घर से बाहर तुम।।
सुबह-सुबह तुम त्याग नींद को, घर से निकलो बाहर तुम…
ना शोर-शराबा कोई होगा, निकलो घर से बाहर तुम।
पियो गिलास भर के जल का, निकलो घर से बाहर तुम।।
स्वच्छ हवा और शीतलता भी, घर से निकलो बाहर तुम।
स्वास्थ्य तुम्हारा स्वस्थ रहेगा, घर से निकलो बाहर तुम।।
सुबह सवेरे त्याग नींद को, निकलो घर से बाहर तुम…
पता करो फिर धीरे-धीरे, लगी कहां है शाखा तुम।
सूक्ष्म व्यायाम और राष्ट्रप्रेम को, एक साथ फिर देखो तुम।।
खेल वहां के अजब अनोखे, स्वस्थ रहोगे देखो तुम।
तन में जोश जगेगा फिर तो, मन पुलकित हो देखो तुम।।
सुबह-सुबह तुम त्याग नींद को, घर से निकलो बाहर तुम…
मिले वहां पर राह संस्कार की, एक बार तो देखो तुम।
नन्हे बालक मिले वहा पर, हर्षित होकर देखो तुम।।
युवक संघ से जुड़े मिलेंगे, गर्व से जाकर देखो तुम।
वयोवृद्ध भी वहां मिलेंगे, ज्ञान खजाना देखो तुम।।
सुबह सवेरे त्याग नींद को, निकलो घर से बाहर तुम…
बी.पी. पास नही रहेगा, त्याग नींद को देखो तुम।
करो योग फिर वही बैठ कर, हिम्मत करके देखो तुम।।
हसो वहा पर खुलकर देखो, प्रसन्न रहोगे पुरा दिन।
संगठित रहने का सूत्र मिलेगा, पूरा जीवन देखो तुम।।
सुबह-सुबह तुम त्याग नींद को, घर से बाहर निकलो तुम….
——‐———————————————————-
“ललकार भारद्वाज”