नित ही कैलाश पर भोले…
नित ही कैलाश पर भोले नए करतब दिखाते हैं
ये दुनिया नाचने लगती है जब डमरू बजाते हैं
जटा में धारकर गंगा चन्द्रमा शीश पर धरकर
गले में नाग की माला पहनकर मुस्कुराते हैं
बड़े भोले बड़े दानी बड़े मासूम हैं दिल से
महज लोटा ही भर जल से स्वयंभू रीझ जाते हैं
कई सदियाँ गुजर जाती हैं छूकर उनके चरणों को
महायोगी समाधी में गहन जब डूब जाते हैं
लिए त्रिशूल हाथों में करें संहार असुरों का
वो आते क्रोध में तो लोक तीनों काँप जाते हैं
बताऊँ क्या तुम्हें कितने दयालू हैं मेरे बाबा
बचाने के लिए सृष्टि गले विष धार जाते हैं
असुर हो देव हो मानव हो या हो कोई भी संजय
पुकारे भक्त जो मन से तो नंगे पाँव आते हैं