नित हर्ष रहे उत्कर्ष रहे, कर कंचनमय थाल रहे ।
नित हर्ष रहे उत्कर्ष रहे, कर कंचनमय थाल रहे ।
अरुणिम आभ लिए रविमुख-सा,तिलकित उन्नत भाल रहे ।
नृत्य सिंधु पर करे भले ही, लहर तमस अब आठ पहर-
मोदमान आलोक पर्व से, जग-जीवन खुशहाल रहे ।
अशोक दीप
जयपुर