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12 Nov 2023 · 1 min read

नित हर्ष रहे उत्कर्ष रहे, कर कंचनमय थाल रहे ।

नित हर्ष रहे उत्कर्ष रहे, कर कंचनमय थाल रहे ।
अरुणिम आभ लिए रविमुख-सा,तिलकित उन्नत भाल रहे ।
नृत्य सिंधु पर करे भले ही, लहर तमस अब आठ पहर-
मोदमान आलोक पर्व से, जग-जीवन खुशहाल रहे ।

अशोक दीप
जयपुर

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